दरिया वफ़ा का कभी रुकता नह, मोहब्बत में इंसाब कभी झुकता नहीं
हम चुप है किसी की खुशी के खातिर, और वोह सोचते है के दिल मेरा दुखता नही
कितनी अजीब थी दास्ताँ ऐ मोहब्बत के एक आँख समंदर
और दूजी प्यासी थी
यूँ न मुझको देख तेरा दिल पिघल न जाए, मेरे आँसू से तेरा दमन जल न जाए
वो मुझे फ़िर मिला है, आज ख्वाबों मे ए खुदा कहीं मेरी नींद ना खुल जाए
वादियों से सूरज निकल आया है, फिजाओं मे नया रंग छाया है,
आप क्यूँ उदास बैठे हो, अब तो मुस्करा दो हमारा यह शायरी का पैगाम आया है
एक आरजू रही दिल मे मुद्दतों से, कोई हमें भी चाहे दिल की सिद्दतों से
बहुत वीरान सी है ज़िन्दगी अपनी, के कोई नवाज़ दे हमें आ कर मोहब्बतों से
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2 comments:
ओए होए हेमंत जी बेहतरीन दर्द का नजारा पेश किया है
दरिया वफ़ा का कभी रुकता नहीं, मोहब्बत में इंसां कभी झुकता नहीं
हम चुप है किसी की खुशी की खातिर, और वो सोचते है के दिल मेरा दुखता नही
बेहतरीन शेर
इतने कम शब्दों में बहुत गहरा कह गए आप.
शेर आप का अपना है ना.....फ़िर तो सही है दहाड़ते रहो मेरे दोस्त.
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