Tuesday, May 27, 2008

और लाजवाब शेर

बचपन के दुःख भी कितने अच्छे थे , तब सिर्फ़ खिलोने टूटा करते थे । वह खुशियाँ भी न जाने कैसी खुशियाँ थी, तितली को पकड़ के उछाला करते थे, पाओं मार के ख़ुद बारिश के पानी मे अपने आप को भिगोया करते थे ।
अब तो एक आंसू भी रुसवा कर जाता है, बचपन में तो दिल खोल के रोया करते थे ।

वक्त क इस लम्हे परिंदे बन के उडद जायेंगे, पर यादों की निशानी छोड़ जायेंगे, दोस्त बनते है और बनते जायेंगे, पर आपस दोस्त हम कहा ढूंढ पाएंगे ?

ऐ खुदा ख्वाहिशों के दरबार मे हो मोहब्बत इतनी इन्तहा, की मेरी हर साँस पा महबूब के नाम का दस्तक हो ।

रिश्ता ऐसा हो जो हमें अपना मान सके, हमारे हर दुःख को जान सके, चल रहे हो अगर तेज़ बारिश में भी, पानी से अलग मेरे आंसू पहचान सके

कब्र की मिटटी उठा ले गया कोई, इसी बहाने हमें छु कर चला गया कोई, तन्हाई और अंधेरो में खुश थे हम, फिर से इंतज़ार करने की वजाह दे गया कोई ।

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