Friday, September 12, 2008

बढ़ रहा है खजाना

बूंदे बारिश की ज़मीन पे आने लगी, सोंघी सी महक माटी की जगाने लगी
हवाओं में भी जिअसे मस्ती छाने लगी, वैसे ही हमें भी आपकी याद आने लगी

हर नज़र को किसी नज़र की तलाश है, हर चेहरे में कुछ तो एहसास है,
हम आपसे ऐसे ही नही दोस्ती कर बैठें, क्या करें ? हमारी पसंद ही कुछ ख़ास है

कहाँ से आती है ये हिचकियाँ, कौन फरियाद करता है, खुदा उसे सलामत रखे
जो हमे दूर रहकर भी याद करता है

क्यों हमें किसी की तलाश होती है, क्यों दिल को किसी की आस होती है
चाँद को देखो वोह भी तनहा है जबकि, उसकी चांदनी से रोज़ मुलाकात होती है

पी के रात को हम, आपको भूलने लगे, शराब मे अपने ग़म को मिलाने लगे
जालिम शराब पीते ही असर दिखाने लगी, नशे में आपकी सहेलिया भी याद आने लगी

उम्मीद ऐसी हो जो जीने को मजबूर करे, राह ऐसी हो जो चलने को मजबूर करें
महक कम ना हो कभी अपनी दोस्ती की, दोस्ती ऐसी हो जो मिलने को मजबूर करें

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